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क्या इस अर्थनीति में आप जैसे आम लोगों की कोई परवाह है.? : प्रियंका गांधी

उत्तर प्रदेश। सहारनपुर के एक सर्राफ़ा व्यवसायी और उनकी पत्नी ने कर्ज के बोझ के चलते आत्महत्या कर ली। इस आत्महत्या की वजह से एक हँसता-खेलता परिवार उजड़ गया और दो बच्चे अनाथ हो गए : प्रियंका गांधी।

देश में हर दिन औसतन 19 लोग कर्ज के बोझ के चलते आत्महत्या कर रहे हैं। जबकि करोड़ों आम लोग अपनी इनकम पर टैक्स देते हैं। करोड़ों मध्य वर्ग के लोग, नौकरी पेशा लोग, छोटे व्यवसायी और किसान जब घर की ज़रूरत की चीजों को ख़रीदते हैं, तब उस पर भी मोटा GST देते हैं । मोटरसाइकिल, बच्चों को पढ़ाने, घर में बिटिया की शादी और बड़ी मेडिकल इमरजेंसी जैसी ज़रूरतों के लिए उन्हें मोटी EMI पर बैंकों या मोटे ब्याज पर निजी साहूकारों से कर्ज लेना पड़ता है : प्रियंका गांधी।

आपकी कर्ज की एक किस्त छूट जाए तो फ़ोन पर, दरवाज़े पर वसूली एजेंटनुमा गुंडे भेजे धमकाने चले आते हैं और 2-3 किस्त छूट जाने पर तो घर-ज़मीन-खेत पर नोटिस लग जाती है।

लेकिन आपके ही टैक्स के पैसे से बड़े-बड़े पूँजीपतियों का कर्ज माफ होता है और न तो उनके घर कर्ज वसूली के लिए गुंडे जाते हैं, न ही कोई नोटिस : प्रियंका गांधी

क्या आपको पता है कि देश के बैंकों ने सिर्फ पिछले पांच साल में 9.90 लाख करोड़ रुपये के कर्ज को बट्टे खाते में डाला। इसमें से मात्र 18% वापस वसूले जा सके। 81% से ज्यादा की रकम एक तरह से माफ की जा चुकी है। ये कर्जमाफ़ी उन पूँजीपतियों के लिए थी जिनसे सरकार टैक्स भी कम ले रही है, जिन्हें कर्ज न लौटाने पर थाली में सजाकर कर्जमाफी भी दी जा रही है : प्रियंका गांधी

भाजपा सरकार की इस अर्थनीति को ज़रा देखिए, जहाँ एक तरफ आम लोग, छोटे व्यापारी और किसान टैक्स, महंगाई और कर्ज का दंश झेलते हुए अपना जीवन खत्म करने को मजबूर हैं, वहीं दूसरी तरफ सरकार के चंद उद्योगपति मित्रों के लिए ऐसी नीति बनाई गई है कि उनका अरबों-खरबों का कर्ज चुटकी बजते ही माफ हो जाता है। न तो कोई वसूली का सिस्टम है, न ही कर्ज लौटाने की ज़िम्मेदारी : प्रियंका गांधी

इस दोहरी व्यवस्था में वो आम लोग पिस रहे हैं, जो ज़रा सा कर्ज न चुका पाने के चलते अपना जीवन खत्म करने को मजबूर हैं। क्या इस अर्थनीति में आप जैसे आम लोगों की कोई परवाह है.? : प्रियंका गांधी

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