बाल कहानी *कूलर* (नयन कुमार राठी – विभूति फीचर्स) मम्मी…मम्मी। भंडारघर में अपना कूलर रखा हुआ है, उसे निकलवाओ। कहते हुए प्रीति रसोई में आई। मम्मी ने गैस बंद की और उससे कूलर निकालने का कारण जानना चाहा, तो वह बोली- जानकर भी अंजान नहीं बनो। आपको मालूम है पिछले दस-पंद्रह दिन से गर्मी ने अपने तेवर दिखलाने शुरू कर दिए हैं। सुबह से ही गर्मी महसूस होने लगती है और दोपहर तक तो यह अपने पूरे शबाब पर आ जाती है, जो शाम तक छाई रहती है। इसकी तपन के आगे पंखे तक हार गए हैं। प्राकृतिक हवा तो है ही कहां…? वह तो भला हो कूलर के अविष्कार का, कि जिसने इसे बनाकर गर्मी से राहत दिलाने का काम किया है। आजकल तो इसके बिना काम ही नहीं चलता है। अरे मैं तो शिक्षिका की तरह बोलने लगी मम्मी जी। अब तो आपको मेरी बात समझ आ गई होगी।मम्मी के कुछ नहीं बोलने पर मुंह बिचकाती हुई प्रीति बोली- हां! हां! आप क्यों बोलेंगी? आप कहां चाहती हैं कि हमें गर्मी से राहत मिले। अगर कूलर निकल जाएगा, रोज सुबह-शाम उसमें पानी भरना होगा। उसकी अच्छे से देखभाल करना होगी। मम्मी बोली- बेटी! वैसे तो मैं कुछ नहीं बोलकर चुप ही रहना चाहती थी। पर तूने ऐसी-ऐसी बातें कह दी कि मुझे बोलने के लिए मजबूर होना पड़ा। तू भंडारघर से कूलर निकालने की बात कह रही है। मैं अभी निकाल देती हूं। तू ही सोच तेरे पापा और मुझे भी गर्मी नहीं लगती क्या….? पर हम गर्मी इसलिए सहन कर रहे हैं कि इन दिनों पानी की बहुत किल्लत है। हर दूसरे दिन पानी मिल रहा है और वह भी जरा सी देर। तू तो सुबह सोई रहती है। पानी के लिए तेरे पापा और मैं भागदौड़ करके इधर-उधर से जैसे-तैसे करके जरूरत जितना पानी भर कर लाते हैं और यह पानी दो दिन चलाना होता है। तू ही सोच अगर कूलर निकालेंगे, उसमें पानी की जरूरत हर समय रहेगी। जब हमारी ही पूर्ति मुश्किल से हो रही है तो कूलर के लिए पानी की पूर्ति कैसे करेंगे…..? फिर भी तेरी जिद है तो पापा के ऑफिस से लौटने पर कूलर निकलवाऊंगी।प्रीति कुछ नहीं बोलकर चली गई। मम्मी रसोई बनाने लगी। शाम को पापा ऑफिस से लौटे। उस वक्त प्रीति अपनी सहेली के यहां गई हुई थी। मम्मी ने पापा को सारी बात बतलाकर कूलर निकालने को कहा। वे बोले- अपनी प्यारी बेटी को हम नाराज नहीं करेंगे। वे मम्मी के साथ भंडारघर में आए। मम्मी ने कूलर पर ढ़की चादर हटाई, उसे साफ किया फिर वे और पापा उसे उठाकर हॉल में लाए। पापा ने कूलर में पानी भर दिया और बोले- अब अपनी बेटी आएगी। कूलर देखकर खुश हो जाएगी। थोड़े समय में प्रीति घर आई हॉल में कूलर देखकर उसे आश्चर्य हुआ। वह कुछ कहने ही वाली थी कि पापा आए और बोले- बेटी! कूलर की ठंडी हवा खाओ और खुश हो जाओ।प्रीति बोली- पापा! कूलर क्यों निकाला? वे बोले- बेटी! तेरी मम्मी ने सारी बात बतलाई और हमने कूलर निकाल लिया। प्रीति बोली- पापा! न तो मुझे कूलर चाहिए, न इसकी हवा… आप इसे इसी वक्त भंडारघर में रख दीजिए। पापा बोले- बेटी! मैंने तो इसमें पानी भर दिया है। आज तो तुम्हें इसकी हवा लेना ही होगी। प्रीति बोली- आपकी बात मानकर आज इसकी हवा ले लंूगी। पर कल इसे भंडारघर में रख दीजिएगा। पापा द्वारा कारण पूछने पर वह बोली- मैं मम्मी और आपकी शिकायत करने के लिए मेरी सहेली नीति के यहां गई थी। जब मैं उसके घर पहुंची वह और उसकी मम्मी कूलर को चादर से ढंक रही थी और वे अपना कूलर भंडारघर में रख आई। मैंने कारण पूछा तो नीति बोली- पानी की किल्लत को देखते हुए ऐसा किया है क्योंकि कूलर सामने रहे तो इसे चलाने को जी चाहता है।जब सामने नहीं रहेगा तो इसकी याद भी नहीं आएगी। उसकी इस तरह की बात सुन कर मैं मन में बोली- वास्तव में नीति बहुत समझदार और दूरदर्शी है। यह सब कुछ समझती है और एक मैं हूं कि नादान बनकर अपने मम्मी-पापा को कोस रही हंू और उनकी शिकायत करने यहां चली आई, अब मुझे समझ आ गई है। अब मुझे मम्मी-पापा से कोई शिकायत नहीं है। धन्यवाद नीति…। (विभूति फीचर्स)