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पत्रकारिता के औघड़ बाबा दिनेश चंद्र वर्मा
देश के वरिष्ठ पत्रकार दिनेश चंद्र वर्मा अपने ही अंदाज के सुघड़-औघड़ पत्रकार थे। उन्हें पत्रकारिता का बाबा कह सकते हैं। बातों-बातों में खबर बनाना और आलेख लिखना उनके लिए खेल-तमाशे की तरह था।
बौद्ध भिक्षुओं की अस्थियों की तस्करी की सनसनीखेज स्टोरी से रातोंरात चर्चा में आने वाले वरिष्ठ पत्रकार दिनेश चंद्र वर्मा की पहचान सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं थी।
पत्रकारिता के अपने अब तक के सफर में दिनेश चंद्र वर्मा ने कई ऐसे मामले उठाए, जो न सिर्फ चर्चा में रहे, बल्कि सरकार के लिए दिक्कत का सबब भी बने। बौद्ध भिक्षुओं की अस्थियों की तस्करी वाली स्टोरी से तो भारत और श्रीलंका दोनों सरकारें हिल गई थीं।
श्रीलंका सरकार ने इसको आधार बनाते हुए अपने भारतीय राजदूत को श्रीलंका बुला लिया था। इस स्टोरी को आधार बनाते हुए तब लाडली मोहन निगम ने इस मामले को संसद में पुरजोर ढंग से उठाया था। दिनेश वर्मा के पिता जगन्नाथ प्रसाद मिडिल स्कूल में हेड मास्टर थे।
दिनेश वर्मा पत्रकारिता जीवन में एक संकल्प से आए थे। उनका सपना था कि खबरों के इतर भी समाज को देने के लिए काफी कुछ है,इसीलिए परंपरागत पत्रकारिता को छोड़ वे हमेशा कुछ स्पेशल करने के लिए सजग रहे।
29 जुलाई 1944 को जन्में दिनेश वर्मा ने क्रिश्चियन कॉलेज इंदौर से राजनीति विज्ञान में एमए की डिग्री ली। उनके भीतर पढऩे और लिखने का जुनून बचपन से ही रहा।
उनकी पहली रचना 1958 में ग्वालियर से प्रकाशित दैनिक नवप्रभात में छपी थी, जब वे आठवीं कक्षा में पढ़ते थे। यहीं से उनमें पत्रकारिता के बीज अंकुरित होने शुरू हुए।
शिक्षा पूरी करने के बाद विदिशा में चिंगारी अखबार से वर्ष 1960 से पत्रकारिता की शुरुआत की। इसके बाद 1961 में दैनिक भास्कर में श्यामसुंदर ब्यौहार और राजेन्द्र नूतन के साथ पत्रकारिता के गुर सीखे।
तब उन्हें 65 रुपए प्रतिमाह वेतन मिलता था। वहां लंबे समय तक काम करने के बाद वे 1966 में नवभारत पहुंचे। 1967 में दैनिक मध्यप्रदेश ज्वाइन किया। 1969 में जागरण इंदौर में चले गए। यहां कुछ दिन काम किया।
इसके बाद पूर्व सांसद केएन प्रधान के कहने पर वर्ष 1972 में इंदौर समाचार के साथ हिंदी ब्लिट्ज के लिए बतौर स्पेशल रिपोर्टर काम करने लगे।
लेकिन 1975 में पिताजी के स्वास्थ्यगत कारणों से उन्हें अनायास विदिशा लौटना पड़ा। विदिशा में रहकर ही स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता करने लगे।
इस दौरान देश की जानी-मानी पत्रिकाओं में शुमार भू भारती, सरिता, अवकाश, माया और मुक्ता के लिए सम सामयिक मुद्दों और विषयों पर स्वतंत्र रूप से लिखने लगे।
इस दौरान विदिशा की आर्कलॉजी पर नवभारत टाइम्स, हिंदुस्तान और दैनिक आज में कई चर्चित स्टोरी की और सत्यकथाएं भी लिखीं।
इस बीच वर्ष 1984 में शिखर वार्ता का प्रकाशन शुरु हुआ तो उसके लिए स्पेशल इश्यू पर रिपोर्टिंग करने लगे।
वर्मा बताते थे कि पत्रकारिता के अनुशासन में बंधकर काम करना तो मंजूर था, लेकिन पत्रकारिता में बंदिशें गंवारा नहीं थी।
सो इधर-उधर दूसरे पत्र-पत्रिकाओं के लिए रिपोर्टिंग, आलेखन करने के बजाय, निश्चय किया कि क्यों न खुद का प्रकाशन शुरू किया जाए। बस इसी जिद में 1986 में साप्ताहिक वचन बद्ध का प्रकाशन शुरू कर दिया। जिसने पत्रकारिता के नए कीर्तिमान स्थापित किए।
इसी के साथ 1993 में विनायक फीचर्स शुरू कर दी, जो आज देश की स्थापित फीचर्स एजेंसी में शुमार है।
वरिष्ठों को श्रेय
दिनेश वर्मा खुद पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए शोध का विषय हैं।
लेकिन जब बिच्छू डॉट काम ने उनसे बात की थी तब उन्होंने अत्यंत अहोभाव से कहा था कि वे आज पत्रकारिता में जिस मुकाम पर हैं या पत्रकारिता में उनकी जो भी हैसियत है, इसमें पत्रकारिता के पुरोधा श्याम सुंदर ब्यौहार, गोवर्धन मेहता (दैनिक भास्कर के तत्कालीन संपादक), धर्मवीर भारती (धर्मयुग), सच्चिदानंद वात्सायन अज्ञेय (नवभारत टाइम्स) व गुलशेर अहमद शानी (चर्चित उपन्यास कालाजल के लेखक व टाइम्स के एडिटर) के साथ सरिता पत्रिका के संपादक परेशनाथ का बड़ा योगदान है।
वे बताते हैं कि श्याम सुंदर ब्यौहार ने रिपोर्टिंग की बारीकियां सिखाई, तो गोवर्धनदास मेहता ने समसामयिक विषयों पर लेख-आलेख लिखने की महारथ दी। पूर्व सांसद केएन प्रधान ने उन्हें अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद की बारीकियां सिखाई।
दिनेश वर्मा को उनके पत्रकारिता जीवन की उपलब्धियों के लिए देश की कई संस्थाएं सम्मानित कर चुकी हैं। उन्हें पढऩे का शौक बचपन से ही रहा।
आपको आश्चर्य होगा कि वे अपने जीवन में तक 16 पुराण पढ़ चुके थे। रोजाना दो से तीन घंटे पढऩा उनकी आदत का हिस्सा रहा। उनका कहना था कि पत्रकारिता में समय के साथ चलना और हर वक्त अपडेट रहना बड़ी चुनौती है।