(Shah Alert)
प्राय: यह बात भारतीय परिवेश में कही जाती रही है कि वृद्धावस्था में व्यक्ति को आध्यात्म से जुड़ जाना चाहिए तथा तीर्थ यात्रा पर निकल जाना चाहिए।पुरातन काल में जब आवागमन के साधन नहीं हुआ करते थे तब लोग तीर्थ यात्रा में घोड़े,गधे, बैल,भैंसे आदि की सवारी करते या पैदल यात्रा करते जिसमें कई महीनों का या सालों का समय लग जाता था।
कई बुजुर्गों से तो यह भी सुना है कि तीर्थ यात्रा पर जाने वालों की विदाई यही सोच कर की जाती थी कि अब हो सकता है वे जीवित नहीं लौट सकेंगे,यदि लौट कर आ जाते थे तो वे उनका और अपना सौभाग्य समझते थे। लेकिन वर्तमान आधुनिक युग की तीर्थ यात्रा की तस्वीर देखें तो काफी बदली हुई दिखाई देती है। आवागमन के साधन जल, थल, नभ तीनों रास्तों से हो जाने से यात्रा अत्यंत सुगम हो गई है।लोगों की आर्थिक स्थिति भी शनै:- शनै: सुदृढ़ हो गई है, जिसके चलते तीर्थ यात्रा में जाने के लिए सभी हिम्मत करने लगे हैं।मेरा स्वयं का अनुभव है कि हर व्यक्ति को पचास वर्ष की उम्र में यात्रा पर निकल ही जाना चाहिए।
शारीरिक क्षमता इसके लिए सहायक होती है। खानपान के दूषित होने के कारण आज इंसानों को विभिन्न प्रकार के राजरोग हो जाते हैं जो कभी धनवानों को हुआ करते थे,मधुमेह और रक्तचाप जैसे रोग तो हर तीसरे इंसान में होने लगे हैं।
उत्तर दिशा में चारधाम की यात्रा जिसमें प्रमुख रूप से बद्रीनाथ धाम,केदारनाथ धाम, गंगोत्री तथा यमुनोत्री या जमनोत्री हैं जो कि हिमालय पर्वत की गोद में स्थित हैं। जहां पर पैदल, घोड़े या पालकी से चढ़ते हैं ,खास कर यमुनोत्री और केदारनाथ में तो काफी परिश्रम के पश्चात ही दर्शन हो पाते हैं। वहां स्थित बर्फ से ढंकी ऊंची- ऊंची चोटियां साक्षात शिव के दर्शनों का आभास करवाती हैं।
यहां मैं इस वर्ष लगी श्रद्धालुओं की उस ऐतिहासिक भीड़ के बारे में उल्लेख करना चाहता हूं जिसके चलते बीस पच्चीस किलो मीटर का जाम सड़कों पर लगा,कई निर्दोष तीर्थ यात्री अपनी जान देने को बाध्य हुए। जो यात्रा अभियान का संचालन करते हैं उनका कहना रहा कि इतनी भीड़ हमने अपने चालीस वर्ष के अनुभव में कभी नहीं देखी।इसके पीछे का कारण मैंने भी खोजने का प्रयास किया तो सर्व प्रथम यह पाया कि युवाओं का पर्यटन के प्रति और रील बनाने का अजीब आकर्षण या शौक। स्मार्ट मोबाइल के आगमन से फोटो ग्राफी,वीडियो ग्राफी आसान हो गई है।
इंस्टाग्राम,यू ट्यूब और अन्य सोशल मीडिया पर अपने लाइक कमेंट बढ़ाने के अजीब जुनून ने भीड़ में अभिवृद्धि की है। इन तथाकथित तीर्थ यात्रियों का आध्यात्मिक यात्रा से कोई लेना देना मुझे तो नजर नहीं आया।दूसरा कारण उत्तराखंड के प्रशासन की सीधी- सीधी लापरवाही। जिसके कारण जाम की भयावह स्थिति बनी। ऋषिकेश में चारधाम यात्रा करने वालों का पंजीयन किया जा रहा था, तो स्वाभाविक है कि प्रशासन को यह भी ज्ञात हो रहा था कि कितने तीर्थ यात्री किस- किस प्रकार के व कितने वाहन से जाएंगे तो इनके द्वारा आवश्यकता से अधिक वाहनों को क्यों छोड़ा गया? यदि तीर्थ यात्रियों के समूह बना कर वाहनों को बारी- बारी से छोड़ते तो इतनी लंबी जाम की स्थिति से छुटकारा मिल सकता था। इस जाम से बुजुर्गों की सेहत खराब हुई तथा कई लोग मौत के मुंह में चले गए। बद्रीनाथ धाम में मंदिर परिसर में लिखा है कि यहां वी. आई. पी दर्शन नहीं करवाए जाते मगर खुले आम इसका उल्लंघन वहां की पुलिस करती दिखाई दी। शिकायत करने पर यात्रियों से अभद्रता की गई। इसी प्रकार लगभग सभी मंदिरों में फोटोग्राफी, वीडियो ग्राफी नहीं करने के निर्देश लिखे बोर्ड लगे थे मगर न तो यात्री मान रहे थे न कोई इन्हें रोकने वाला था।
हम स्वयं सात घंटे की लंबी कतार में घंटों लगे रहे कई लोग कतार के मध्य घुसते रहे मगर कोई भी पुलिस वाला ड्यूटी नहीं कर रहा था सभी मंदिर के आसपास दिखाई दिए जो अपनी स्वार्थ सिद्धि में लिप्त थे।कांस्टेबल से लेकर एस डी ओ पी स्तर तक के पुलिस अधिकारी उपस्थित रहे। यदि प्रशासन की चुस्ती और अनुशासन होता तो निश्चित ही तीर्थ यात्रा आसान होती। आपको सुनकर आश्चर्य होगा कि हर वस्तु का दाम निर्धारित दरों से दो से तीन गुना वसूला जा रहा था तथा नकली खाद्य पदार्थों को बेचा जा रहा था। केदारनाथ में बिसलरी एवम अन्य चालू कंपनियों का मिनरल वाटर अस्सी रुपए प्रति बोतल बेचा जा रहा था। मिल्क पाउडर से बनी घटिया चाय तीस रुपए तक बेची जा रही थी। आलू का परांठा अस्सी रुपए में तीर्थ यात्रियों को खरीदना पड़ा। बाद में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस भयावह स्थिति को स्वयं आकर संभालने का प्रयास तो किया मगर बिगड़े हालात सुधारने में काफी समय लग गया। बाद में प्रशासनिक अधिकारी अवश्य थोड़े सतर्क दिखाई दिए।