देश में मेरी तरह असंख्य लोग हैं जो रामोजी राव से नहीं मिले ।
लेकिन देश में ऐसे लोगों की संख्या शायद ज्यादा होगी जो रामोजी राव से मिले या न मिले बिना भी उनके बारे में बहुत कुछ जानते हैं।
एक किसान परिवार में जन्मे चेरूकुरी रामोजी राव कल तक हमारे बीच थे,अब उनकी जगह हमारे दिलों में रहेगी। लम्बी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया ,लेकिन वे दशकों तक जीवित रहेंगे उन लोगों के दिलों में जिन्हें उन्होंने अपने परिवार सा सम्मान और दर्जा दे रखा था।
बात 2002 की है जब मुझे रामोजी राव से मिलने का मौक़ा मिलने वाला था। मैं अपनी बेटी के साथ उनसे मिलने वाला था । बेटी का चयन ईटीवी हिंदी चैनल के लिए हुआ था। परिस्थितियां ऐसी बनीं कि न बेटी ने ईटीवी ज्वाइन किया और न मैं हैदराबाद जा पाया। मैं अनेक बार हैदराबाद गया लेकिन हर बार रामोजी राव से नहीं मिल पाया। यह संयोग की बात है ,लेकिन उनके किस्से मैं हमेशा सुनता रहा। आज भी रामोजी राव के परिवार में हमारे परिवार के वरिष्ठ सदस्य डॉ. सचिन शर्मा जुड़े हुए हैं।
रामोजी राव मेरे लिए इसलिए हमेशा जिज्ञासा का विषय रहे क्योंकि उन्होंने एक साधारण किसान की भूमिका से हटकर एक असाधारण कारोबारी के रूप में अपनी छवि खुद गढ़ी। वे बहुधंधी व्यक्ति रहे। उनका हौसला अपराजेय रहा। वे कई बार गिरे,सम्हले और आगे बढ़ गए। उनके जैसा कर्मठ और जिद्दी आदमी मेरी नजरों से अभी तक नहीं गुजरा। रामोजी राव को विद्वान लोग भारत का ‘ रुपर्ट मर्डोक ‘ कहते हैं ।वे थे भी तो ऐसे ही। रूपर्ट मड्रोक ऑस्ट्रेलिया के मीडिया मुगल है। उन्होंने 92 साल की उम्र में मैदान छोड़ा किन्तु भारत के इस मड्रोक ने ताउम्र मैदान नहीं छोड़ा। वे रामोजी ग्रुप के चैयरमैन थे । उनके नेतृत्व में रामोजी ग्रुप ने दुनिया का सबसे बड़ा फिल्म स्टूडियों रामोजी फिल्म सिटी बनाया । रामोजी राव यहीं नहीं रुके उन्होंने मार्गदर्शी चिटफंड, ईनाडू तेलुगु अखबार, ईटीवी नेटवर्क, प्रिया फूड्स, डॉल्फिन हॉटल्स, उषाकिरण मूवीज की एक ऐसी श्रृंखला खड़ी कर दी जिसका कोई तोड़ नहीं दिखाई देता। ।
रामोजी राव की रुचियाँ विचित्र थीं । वे राजनीति से दूर रहकर भी राजनीति के लिए महत्वपूर्ण थे।उन्होंने क्षेत्रीय भाषा और अस्मिता के लिए जो काम किया उसी को देखते हुए भारत सरकार ने साल 2016 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया था। वे चाहते तो संसद के उच्च सदन में भी जा सकते थे । लेकिन उन्होंने इसके बारे में शायद कभी सोचा ही नहीं और यदि कभी सोचा भी हो तो इसका इजहार नहीं किया। रामोजी राव का मानना था कि मीडिया कोई बिजनेस नहीं है। उनकी यही मान्यता उन्हें दूसरे मीडिया मुगलों से अलग श्रेणी में खड़ा करती है। वे हमेशा अपनी सोच पर कायम रहे। उन्होंने अपने अनेक चैनल उस समय बेच दिए जब देश में चैनल चलाना एक लाभ का सौदा था।
आपको बता दूँ कि राव को सामाजिक कल्याण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के लिए भी जाना जाता था। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और ग्रामीण विकास में विभिन्न पहलों का समर्थन किया, जिससे अनगिनत लोगों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा। रामोजी राव की विरासत उनकी उपलब्धियों से कहीं आगे तक है। राव साहब को एक दूरदर्शी व्यक्ति के रूप में याद किया जाता रहेगा, वे ऐसे थे जिन्होंने न केवल भारतीय सिनेमा को बदला बल्कि मीडिया पेशेवरों की कई पीढ़ियों को भी प्रेरित किया।
रामोजी राव बनने कि लिए केवल जन्म लेना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि सपने देखना और उन सपनों में रंग भरने के लिए पुरुषार्थ भी करना जरूरी होता है। पुरुषार्थ कैसे किया जाता है ये रामोजी राव ने करके दिखाया। रामोजी राव ने तमिल अस्मिता के लिए जितना काम किया है उसके बारे में शोध की जरूरत है। रामोजी राव के रास्ते पर चलने का काम अब उनके परिजनों के साथ उनके साम्राज्य में शामिल हर उस व्यक्ति का है जो आज की तारीख में उनसे जुड़ा था। भारत के इस मीडिया महानायक के प्रति मेरी हार्दिक संवेदनाएं।