हापुड़ में एक सरकारी कार्यक्रम के दौरान योगी सरकार के मंत्री कपिल देव अग्रवाल ने पुलिस प्रशासन को स्पष्ट निर्देश दिए कि नवरात्र के पूरे 9 दिनों तक मीट की दुकानें बंद रखी जाएं। मंत्री ने एसपी कुंवर ज्ञानंजय सिंह से मंच पर ही कहा कि वह इस आदेश का सख्ती से पालन सुनिश्चित कराएं। उन्होंने यह भी कहा कि अगर कोई दुकानदार इस आदेश का उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए
सपा का पलटवार: “संविधान चलेगा या फरमान?”
मंत्री के इस बयान पर समाजवादी पार्टी ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। सपा प्रवक्ता दीपक रंजन ने सवाल उठाते हुए कहा, “देश संविधान से चलेगा या फिर किसी मंत्री के आदेश से? अगर नवरात्र में मीट की दुकानें बंद हो सकती हैं, तो रमज़ान के दौरान शराब की दुकानें क्यों नहीं बंद की जातीं?”
क्या धार्मिक तुष्टिकरण हो रहा है?
राजनीतिक गलियारों में इस फैसले को लेकर बहस छिड़ गई है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार धार्मिक आधार पर भेदभाव कर रही है। कुछ संगठनों का कहना है कि अगर सरकार धार्मिक भावनाओं का सम्मान करना चाहती है तो सभी समुदायों के त्योहारों पर समान प्रतिबंध लगाने चाहिए
क्या यह आस्था का मामला है या राजनीति का?
यह पहली बार नहीं है जब धार्मिक आयोजनों को लेकर सरकार के फैसले विवादों में आए हैं। सवाल यह है कि क्या यह फैसला सिर्फ धार्मिक भावनाओं का सम्मान करने के लिए है, या फिर इसके पीछे कोई राजनीतिक रणनीति छिपी है?आपका क्या मानना है—क्या नवरात्र में मीट की दुकानों को बंद करवाना उचित है, या फिर यह सरकार की मनमानी है?
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