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वक्फ संशोधन , संसद से सड़क तक रणभेदन

वक्फ
वक्फ अरबी भाषा का शब्द है। जो वकुफा शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है ठहरना, वक्फ का मतलब वाकिफ – परिचितय भी है। वक्फ अल्लाह के नाम पर अर्पित वस्तु या परोपकार के लिए दिया गया धन होता है। इसमें चल और अचल संपत्ति को शामिल किया जाता है। बता दें कि कोई भी मुस्लिम अपनी संपत्ति वक्फ को दान कर सकता है। कोई भी संपत्ति वक्फ घोषित होने के बाद गैर-हस्तांतरणीय हो जाती है।वक्फ इस्लामी कानून के तहत धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए विशेष रूप से समर्पित संपत्तियों को संदर्भित करता है। इन संपत्तियों का प्रबंधन वक्फ या किसी सक्षम प्राधिकारी द्वारा नियुक्त मुतव्वली द्वारा किया जाता है।

निकिश कुमारी

भारत में वक्फ की अवधारणा दिल्ली सल्तनत के समय से चली आ रही है। सुल्तान मुइजुद्दीन मुहम्मद गौरी की ओर से मुल्तान की जामा मस्जिद को एक गांव समर्पित किया गया था। साल 1923 अंग्रेजों ने सबसे पहले मद्रास धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम पेश किया था। इसका मुसलमानों और ईसाइयों ने बड़े पैमाने पर विरोध किया था। इस प्रकार, उन्हें बाहर करने के लिए इसे फिर से तैयार किया गया, इसे केवल हिंदुओं पर लागू किया गया और बाद मे इसका नाम बदलकर मद्रास हिंदू धार्मिक और बंदोबस्ती अधिनियम 1927 कर दिया गया।

1954 में जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने वक्फ अधिनियम पारित किया था। जिसके तहत वक्फों का केंद्रीकरण किया गया। इस अधिनियम के तहत सरकार ने 1964 में केंद्रीय वक्फ परिषद की स्थापना की। 1995 में कानून में संशोधन करके प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में वक्फ बोर्ड के गठन की अनुमति दी गई।केंद्रीय वक्फ परिषद अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत एक वैधानिक निकाय है। जिसकी स्थापना वक्फ अधिनियम, 1954 में दिए गए प्रावधान के अनुसार वक्फ बोर्डों के कामकाज और औकाफ के उचित प्रशासन से संबंधित मामलों पर केंद्र सरकार के लिए सलाहकार निकाय के रूप में 1964 में की गई थी।

देश में कुल 31 वक्फ बोर्ड हैं। देश में चार लाख 27 हजार से ज्यादा वक्फ संपत्ति पंजीकृत हैं। काफी संपत्ति ऐसी हैं जिनका पंजीकरण नहीं हो सका है।वक्फ संपत्ति के प्रबंधन का काम वक्फ बोर्ड करता है। यह एक कानूनी इकाई है। बोर्ड संपत्तियों का पंजीकरण, प्रबंधन और संरक्षण करता है। देश में शिया और सुन्नी दो तरह के वक्फ बोर्ड हैं।अध्यक्ष के अलावा बोर्ड में राज्य सरकार के सदस्य, मुस्लिम विधायक, सांसद, राज्य बार काउंसिल के सदस्य, इस्लामी विद्वान और वक्फ के मुतवल्ली को शामिल किया जाता है। वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन के अलावा बोर्ड वक्फ में मिले दान से शिक्षण संस्थान, मस्जिद, कब्रिस्तान और रैन-बसेरों का निर्माण व रखरखाव करता है।रेलवे और रक्षा विभाग के बाद देश में तीसरी सबसे बडी वक्फ बोर्ड के पास सबसे अधिक संपत्ति है। देश में वक्फ बोर्ड के आठ लाख एकड़ से ज्यादा जमीनें हैं। इनमें अधिकांश मस्जिद, मदरसा, और कब्रिस्तान शामिल हैं। वक्फ बोर्ड की अनुमानित संपत्ति की कीमत 1.2 लाख करोड़ रुपये है।करीब साढ़े नौ लाख एकड़ जमीन होने के बावजूद बोर्ड के पास किसी गरीब मुसलमान की मदद के लिए पैसा नहीं है। यानी अकेले वक्फ बोर्ड के पास ही तीन दिल्ली जितनी जमीनें हैं।जो 8.7 लाख संपत्तियों को नियंत्रित करती है। जिनकी अनुमानित आय का श्रोत 12000 करोड़ रुपया होना है।

तुष्टिकरण की राजनीति कहिए या मुस्लिम राजनीति का ध्रुवीकरण ,केंद्र सरकार संसद में वक्फ अधिनियम 1995 में संशोधन के लिए विधेयक पेश किया है। दावा यह की वक्फ बोर्डों की पारदर्शिता और जिम्मेदारी बढ़ाने के लिए है। विधेयक में वक्फ की ओर से संपत्ति के दावों की जांच करने और बोर्ड में महिलाओं को शामिल करने की अनिवार्यता पर जोर दिया गया है। मुख्य रूप से वक्फ बोर्डों के मनमाने अधिकार को कम करने के उद्देश्य से हैं, जो वर्तमान में उन्हें अनिवार्य सत्यापन के बिना किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति के रूप में दावा करने की अनुमति देता है।वक्फ अधिनियम के सेक्शन 40 पर बहस छिड़ी है। इसके तहत बोर्ड को रिजन टू बिलीव की शक्ति मिल जाती है। अगर बोर्ड का मानना है कि कोई संपत्ति वक्फ की संपत्ति है तो वो खुद से जांच कर सकती है और वक्फ होने का दावा पेश कर सकता है। दरअसल, अगर कोई संपत्ति एक बार वक्फ घोषित हो जाती है तो हमेशा ही वक्फ रहती है। इस वजह से कई विवाद भी सामने आए हैं। अब सरकार ऐसे ही विवादों से बचने की खातिर संशोधन विधेयक लेकर आई है।वक्फ की एक बेशकीमती संपत्ति को वक्फ बोर्ड के कुछ सदस्यों के द्वारा गलत तरीके से बेचे जाने का मामला भी इस समय अदालत में लंबित है।वक्फ बोर्ड मे 12792 और ट्रिब्यूनलअदालत में 90207 केस लम्बीत है। हाल के वर्षों में कई राज्य बोर्डों पर आरोप लगाया गया है कि वे भूमि की बढ़ती मांग के कारण अवैध रिश्वत के बदले में कम दरों पर डेवलपर्स और निजी खरीददारों को वक्फ भूमि बेच रहे हैं।जबकि वक्फ अधिनियम, 1955 की धारा 13 के अधीन कोई भी व्यक्ति किसी चल या अचल सम्पत्ति को, जो वक्फ सम्पत्ति है, किसी अन्य व्यक्ति को नहीं बेचेगा, उपहार में नहीं देगा, विनिमय नहीं करेगा, बंधक नहीं रखेगा या हस्तांतरित नहीं करेगा।केंद्र की राय है कि यदि वक्फ की संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन होगा तो इसको गलत तरीके से बेचा-खरीदा नहीं जा सकेगा। इसका सदुपयोग गरीब मुसलमानों के हितों में किया जा सकेगा।सरकार का कहना है कि वक्फ बोर्डों पर माफियाओं का कब्जा है।परंतु धर्मनिरपेक्ष पार्टियों का कहना है इसेसंविधान से मिले ‘धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन’ है। यह विधेयक अनुच्छेद 14,15 और 25,26,29 में दिए गए सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।

बहरहाल………अल्पसंख्यक मामलों केकेंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 पेश किया है। जिसमें धारा 40 को निरस्त करने और वक्फ बोर्डों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने जैसे प्रमुख बदलावों का प्रस्ताव किया गया है। वक्फ कानून 1995 के सेक्शन 40 को हटाना चाहती है। इस कानून के तहत वक्फ बोर्ड को किसी भी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति घोषित करने का अधिकारहै।इसमें कहा गया है कि बोर्ड में दो गैर-मुस्लिम सदस्य सदस्य होने चाहिए , और पिछड़े मुस्लिम वर्गों से कम से कम एक सदस्य। इसमें बोहरा और आगाखानी समुदायों से भी एक-एक सदस्य होना चाहिए। इसका उद्देश्य वक्फ बोर्डों की संरचना और कामकाज को बदलने के लिए धारा 9 और 14 में संशोधन करना है, जिसमें महिलाओं के लिए प्रतिनिधित्व को शामिल किया गया है।परंतु विडंबना देखिए भाजपा सरकार का,भारत सरकार के राजपत्र दिनांक 23 सितंबर 2013 को पहले से ही स्पष्ट प्रकाशित है कि दो मुस्लिम महिलाओं को बोर्ड में समायोजित करने का उल्लेख है।

खैर……मौजूदा वक्फ अधिनियम 1995 का नाम बदलकर एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास अधिनियम यानी उम्मीद करने का प्रावधान है। विधेयक के सबसे विवादास्पद तत्वों में से एक प्रस्ताव है कि जिला कलेक्टर को यह निर्धारित करने के लिए प्राथमिक प्राधिकारी के रूप में नामित किया जाए कि कोई संपत्ति वक्फ या सरकारी भूमि के रूप में वर्गीकृत है या नहीं। यह जिम्मेदारी वक्फ न्यायाधिकरण से हटा देता है। एक समायोजन जिसके बारे में आलोचकों का तर्क है कि इससे निहित स्वार्थों द्वारा मूल्यवान संपत्तियों को हासिल करने के लिए प्राधिकरण का दुरुपयोग हो सकता है। इसके अतिरिक्त, विधेयक में विशेष रूप से बोहरा और अगाखानियों के लिए एक अलग औकाफ बोर्ड के गठन की रूपरेखा तैयार की गई है,जिससे वक्फ बोर्डों में शिया, सुन्नी, बोहरा और अगाखानियों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होगा।इन परिवर्तनों के साथ-साथ, विधेयक का उद्देश्य केंद्र सरकार को भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा नियुक्त लेखा परीक्षकों के माध्यम से वक्फ संपत्तियों की ऑडिट शुरू करने का अधिकार प्रदान करना है।
मोदी सरकार की मजबूरी कहिए या एनडीए सरकार की हताशा। संभवतः 10 साल में पहली बार है कि 18वीं लोकसभा के पटल पर शुक्रवार 9 अगस्त 2024 को 40 पृस्ठो पर आधारित वक्फ संशोधन बिल नंबर 109 लोकतंत्र के मंदिर में रखकर,भाजपा ने एक तीर से दो शिकार किया है। पहला, अपनी खोई जनाधार की लोकप्रियता को पुनः स्थापित करना। दूसरा, आगामी कुछ महीने उपरांत वर्ष के अंत तक 4 विधानसभा चुनाव के मद्धेनजर यह वक्फ बिल को साधकर हरियाणा,महाराष्ट्र,झारखंड और जम्मू कश्मीर में पुनः हर कीमत पर भाजपा अपनी सरकार राज्यों में स्थापित कर साथ ही राज्यसभा में निर्णायक शक्ति का संचार करना चाहती है। वक्फ संशोधन विधेयक के लिए जेपीसी गठित कर दी गई है। जेपीसी में कुल 31 सदस्य हैं। इनमें लोकसभा के 21 और राज्यसभा के 10 सांसद शामिल हैं। समिति उन संघों, सार्वजनिक निकायों या विशेषज्ञों से साक्ष्य भी ले सकती है जो विधेयक में रुचि रखते हैं। इसी तरह समिति वफ्फ विधेयक के पहलुओं और सांसदों की आपत्तियों पर विचार करने के बाद अपनी रिपोर्ट सदन को पेश कर देगी। किसी भी मामले की जांच के लिए समिति के पास अधिकतम तीन महीने की समय सीमा होती है। इसके बाद संसद के समक्ष उसे अपनी जांच रिपोर्ट पेश करनी होती है। समिति अपना कार्यकाल या कार्य पूरा होने के बाद भंग हो जाती है। समिति की सिफारिशें सलाहकारी होती हैं और सरकार के लिए उनका पालन करना अनिवार्य नहीं है।लोकसभा मे अब तक अलग-अलग मामलों को लेकर कुल आठ बार जेपीसी का गठन किया जा चुका है। इसे अगले संसद सत्र के पहले हफ्ते के अंत तक अपनी रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया गया है।

जो भी हो…….. इस कटु सत्य कि अवहेलना या अनदेखा नहीं किया जा सकता कि, वक्फ बोर्ड में घोर भ्रष्टाचार व्याप्त है।भू माफिया हो या दलाल फिर वह चाहे वक्फ बोर्ड के अधिकारी हो या कर्मचारी,अपनी फर्ज और जिम्मेदारियों को तिलांजलि देकर कौम वा मिल्लत की मल्कीयत बल्कि यूं कहिए कि अल्लाह की मल्कीयत को बेचकर,गिरवी रखकर उसने न सिर्फ वक्फ प्रॉपर्टी के साथ छल किया बल्कि समाज का भी पतन किया।इसमें कुछ लोग अपवाद स्वरूप स्वच्छ चरित्र के हो सकते हैं परंतु ज्यादातर लोग अपराधी पृष्ठभूमि, दिशाहीन राजनीतिज्ञ, भ्रष्ट छद्म तथाकथित सामाजिक नेता,जिसे न सिर्फ वक्फ संपत्ति की सुरक्षा से कोई सरोकार है और ना ही इसके विकास हेतु स्वर्णिम भविष्य की कोई रूपरेखा या योजना को मूर्त रूप देकर विस्तार की चरणबद्ध करने का क्रियान्वयन की दूरदर्शिता।आजादी के 77 वर्ष बीत जाने के बाद भी वक्फ संपत्ति का ना कोई सर्वे हुआ और ना ही डिजिटल लाइजेशन। नेतृत्व विहीन और दिशा हीन लोगों ने वक्फ की संपत्ति को अपने निजी स्वार्थ को सर्वोपरि रख रिश्वत लेकर वक्फ संपत्ति को कम किराया या लीज पर देकरअपनी दुकानदारी चलाई। बड़े पैमाने पर इन्हीं के द्वारा वक्फ संपत्ति पर कब्जा किया और वक्त पड़ा तो भूमाफियाओं को बेच दिया। सरकारों ने भी वक्फ संपत्तिको अतिक्रमण, कब्जा वा अधिग्रहण किया और तो और दूसरे महकेमें को भी किराया पर दे दिया। 1976 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारत के सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा था कि वक्फ की संपत्ति को खाली करें या फिर बाजार के भाव में किराया वक्फ बोर्ड को अदा करें।

अंन्ततोगत्वा , अब समय आ गया है कि आम जनता को अब ना सिर्फ सड़क से संसद तक सरकार से लड़ना होगा बल्कि साथ ही वक्फ बोर्ड में बैठे माफिया,सरगना और अपराधी छवि के लोगों के साथ जिला प्रशासन,राज्य सरकार और केंद्र सरकार से भी लड़कर वक्फ बोर्ड की कब्जे वाली जमीन को आजाद करा कर समाज के नव निर्माण में अपनी महती योगदान देकर वक्फ बोर्ड की जायदाद को जनहित मे सदुपयोग कर चार चांद लगाए।

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