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बोर्ड का कहना है कि मुसलमान शरिया कानून से समझौता नहीं करेंगे, इसलिए समान या सेक्युलर नागरिक संहिता स्वीकार नहीं होगी।

Uniform Civil Code: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘सेक्युलर सिविल कोड’ पर दिए गए बयान पर कड़ी आपत्ति जताई है।

बोर्ड का कहना है कि मुसलमान शरिया कानून से समझौता नहीं करेंगे, इसलिए समान या सेक्युलर नागरिक संहिता स्वीकार नहीं होगी।

दरअसल स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा था, ‘समाज का एक बड़ा वर्ग मानता है और इसमें सच्चाई है कि मौजूदा नागरिक संहिता एक तरह से सांप्रदायिक नागरिक संहिता है।

यह एक ऐसा नागरिक कानून है जो भेदभाव को बढ़ावा देता है। यह देश को धार्मिक आधार पर बांटता है और असमानता को बढ़ावा देता है।

‘धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता’ लाने संबंधी प्रधानमंत्री की टिप्पणी को लेकर हैरानी जताई। और इसे ‘एक सोची-समझी साजिश बताया जिसके गंभीर परिणाम होंगे।’

बोर्ड यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण समझता है कि भारत के मुसलमानों ने कई बार यह स्पष्ट किया है कि उनके पारिवारिक कानून शरिया कानून पर आधारित हैं, जिससे कोई भी मुसलमान किसी भी कीमत पर विचलित नहीं हो सकता।

इसमें कहा गया है कि देश की विधायिका ने स्वयं ‘शरीयत एप्लीकेशन एक्ट, 1937’ को मंजूरी दी है और भारत के संविधान ने अनुच्छेद 25 के तहत धर्म को मानने, उसका प्रचार करने और उसका पालन करने को मौलिक अधिकार घोषित किया है।

देश के निर्वाचित प्रतिनिधियों को ऐसी निरंकुश शक्तियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।संविधान में एक संघवादी राजनीतिक संरचना और बहुलवादी समाज की परिकल्पना की गई है, जहां धार्मिक संप्रदायों और सांस्कृतिक इकाइयों को अपने धर्म का पालन करने और अपनी संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार है।

उन्होंने प्रधानमंत्री की ओर से संवैधानिक शब्द समान नागरिक संहिता के स्थान पर ‘सेक्युलर सिविल कोड’ का प्रयोग करने की आलोचना की। इलियास ने प्रधानमंत्री की मंशा पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया कि वह केवल शरिया कानून को ही निशाना बना रहे हैं।

‘धर्म आधारित पारिवारिक कानूनों को सांप्रदायिक बताकर प्रधानमंत्री ने न केवल पश्चिम की नकल की है, बल्कि देश के बहुसंख्यक लोगों का भी अपमान किया है जो धर्म का पालन करते हैं।

यह धार्मिक समूहों के लिए अच्छा संकेत नहीं है।’ उन्होंने कहा कि ‘शरीयत एप्लीकेशन एक्ट’ और हिंदू कानूनों में बदलाव करके धर्मनिरपेक्ष संहिता लाने का कोई भी प्रयास ‘निंदनीय और अस्वीकार्य’ होगा।

इलियास ने कहा कि सरकार को भाजपा सरकार द्वारा नियुक्त विधि आयोग के अध्यक्ष की टिप्पणी को कायम रखना चाहिए, जिन्होंने 2018 में स्पष्ट रूप से कहा था कि समान नागरिक संहिता ‘न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय है’।

पीएम मोदी ने यूसीसी पर क्या कहा?

मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लालकिले की प्राचीर से अपने संबोधन में समान नागरिक संहिता और इसके बारे में उच्चतम न्यायालय के आदेशों का उल्लेख किया था और इस विषय पर देश में गंभीर चर्चा की जरूरत पर बल दिया था।

उन्होंने कहा था, ‘देश का एक बहुत बड़ा वर्ग मानता है कि जिस नागरिक संहिता को लेकर हम लोग जी रहे हैं, वह सचमुच में साम्प्रदायिक और भेदभाव करने वाली संहिता है। मैं चाहता हूं कि इस पर देश में गंभीर चर्चा हो और हर कोई अपने विचार लेकर आए।

‘ उन्होंने कहा था, ‘जो कानून धर्म के आधार पर देश को बांटते हैं, ऊंच-नीच का कारण बन जाते हैं… उन कानूनों का आधुनिक समाज में कोई स्थान नहीं हो सकता। अब देश की मांग है कि देश में धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता हो।’

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